सीआरपीएफ, अब यह नाम केवल चुनाव, धरना-प्रदर्शन और रैलियां जैसी रुटीन ड्यूटी से बाहर निकल चुका है। आज यह बल नक्सल और आतंकवाद का जिस तरह से मुकाबला कर रहा है, उससे दुनिया में सीआरपीएफ को एक अत्याधुनिक टेक्टिक फोर्स के तौर पर पहचाना जाता है। करीब साढ़े तीन लाख की संख्या वाली इस फोर्स ने खासतौर पर अपने आपरेशनों वाले क्षेत्रों में 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा था। कोई एक नहीं, बल्कि दर्जनों बार केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस बाबत पत्र लिखा गया, मगर हर बार एक ही जवाब मिला 'ना'। बीएसएफ ने केवल बॉर्डर एरिया में यह अधिकार देने की बात कही तो उसे भी वही जवाब मिला, 'इंटरसेप्शन पावर' नहीं मिलेगी।
बता दें कि सीआरपीएफ के पास तीव्र और स्टीक इंटेलीजेंस इनपुट जुटाने के लिए कोई प्रशिक्षित विंग नहीं है। उपकरणों की बात करें तो वे बिल्कुल ही नहीं हैं। चार-पांच साल पहले जब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था तो बल को अपनी खुफ़िया इकाई के गठन की मंजूरी मिली थी। पहले बैच में करीब आठ सौ जवानों की भर्ती की गई। मौजूदा समय में इनकी संख्या करीब दो हजार बताई जाती है।
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सीआरपीएफ की खुफ़िया इकाई इंटेलीजेंस एजेंसियों की तरह प्रशिक्षित नहीं है। दूसरा इनके पास 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार भी नहीं है। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि नक्सल और आतंकवाद प्रभावित इलाके में इंटेलीजेंस के हर छोटे बड़े इनपुट के लिए दूसरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि आपरेशन से पहले या उसके दौरान इतना समय नहीं होता कि संबंधित एजेंसी के इनपुट का इंतजार किया जाए।
कई बार बहुत सी बातें सुरक्षा बलों के सामने होती हैं या उन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ ऐसा इनपुट मिलता है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो सुरक्षा बलों को उसका बड़ा फायदा मिल सकता है। ऐसा होते हुए भी बल को आईबी या लोकल पुलिस के इनपुट का इंतज़ार करना पड़ता है।
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बता दें कि सीआरपीएफ के पास तीव्र और स्टीक इंटेलीजेंस इनपुट जुटाने के लिए कोई प्रशिक्षित विंग नहीं है। उपकरणों की बात करें तो वे बिल्कुल ही नहीं हैं। चार-पांच साल पहले जब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था तो बल को अपनी खुफ़िया इकाई के गठन की मंजूरी मिली थी। पहले बैच में करीब आठ सौ जवानों की भर्ती की गई। मौजूदा समय में इनकी संख्या करीब दो हजार बताई जाती है।
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सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सीआरपीएफ की खुफ़िया इकाई इंटेलीजेंस एजेंसियों की तरह प्रशिक्षित नहीं है। दूसरा इनके पास 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार भी नहीं है। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि नक्सल और आतंकवाद प्रभावित इलाके में इंटेलीजेंस के हर छोटे बड़े इनपुट के लिए दूसरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि आपरेशन से पहले या उसके दौरान इतना समय नहीं होता कि संबंधित एजेंसी के इनपुट का इंतजार किया जाए।
कई बार बहुत सी बातें सुरक्षा बलों के सामने होती हैं या उन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ ऐसा इनपुट मिलता है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो सुरक्षा बलों को उसका बड़ा फायदा मिल सकता है। ऐसा होते हुए भी बल को आईबी या लोकल पुलिस के इनपुट का इंतज़ार करना पड़ता है।
एक-दो नहीं, बल्कि सात-आठ साल से यह मांग उठ रही है
सीआरपीएफ ने 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा तो जवाब मिला 'ना'
Reviewed by Akash Sharma
on
February 16, 2019
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