सीआरपीएफ ने 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा तो जवाब मिला 'ना'

सीआरपीएफ, अब यह नाम केवल चुनाव, धरना-प्रदर्शन और रैलियां जैसी रुटीन ड्यूटी से बाहर निकल चुका है। आज यह बल नक्सल और आतंकवाद का जिस तरह से मुकाबला कर रहा है, उससे दुनिया में सीआरपीएफ को एक अत्याधुनिक टेक्टिक फोर्स के तौर पर पहचाना जाता है। करीब साढ़े तीन लाख की संख्या वाली इस फोर्स ने खासतौर पर अपने आपरेशनों वाले क्षेत्रों में 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा था। कोई एक नहीं, बल्कि दर्जनों बार केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस बाबत पत्र लिखा गया, मगर हर बार एक ही जवाब मिला 'ना'। बीएसएफ ने केवल बॉर्डर एरिया में यह अधिकार देने की बात कही तो उसे भी वही जवाब मिला, 'इंटरसेप्शन पावर' नहीं मिलेगी।
                                Image result for phone call

यह भी पढ़े :- सबसे बड़ा आत्मघाती हमला: पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले को उड़ाया, 42 जवान शहीद, 40 घायल


बता दें कि सीआरपीएफ के पास तीव्र और स्टीक इंटेलीजेंस इनपुट जुटाने के लिए कोई प्रशिक्षित विंग नहीं है। उपकरणों की बात करें तो वे बिल्कुल ही नहीं हैं। चार-पांच साल पहले जब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था तो बल को अपनी खुफ़िया इकाई के गठन की मंजूरी मिली थी। पहले बैच में करीब आठ सौ जवानों की भर्ती की गई। मौजूदा समय में इनकी संख्या करीब दो हजार बताई जाती है।

यह भी पढ़े :- पुलवामा आतंकी हमले में बड़ा खुलासा


सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सीआरपीएफ की खुफ़िया इकाई इंटेलीजेंस एजेंसियों की तरह प्रशिक्षित नहीं है। दूसरा इनके पास 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार भी नहीं है। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि नक्सल और आतंकवाद प्रभावित इलाके में इंटेलीजेंस के हर छोटे बड़े इनपुट के लिए दूसरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि आपरेशन से पहले या उसके दौरान इतना समय नहीं होता कि संबंधित एजेंसी के इनपुट का इंतजार किया जाए।



कई बार बहुत सी बातें सुरक्षा बलों के सामने होती हैं या उन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ ऐसा इनपुट मिलता है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो सुरक्षा बलों को उसका बड़ा फायदा मिल सकता है। ऐसा होते हुए भी बल को आईबी या लोकल पुलिस के इनपुट का इंतज़ार करना पड़ता है।

एक-दो नहीं, बल्कि सात-आठ साल से यह मांग उठ रही है

सीआरपीएफ के मौजूदा आईजी जो कि कॉडर अधिकारी हैं, का बड़े साफ तौर पर कहना है कि 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगने के लिए सीआरपीएफ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को दर्जनों पत्र लिखे हैं। एक-दो साल से नहीं, बल्कि सात-आठ साल पहले से यह पत्राचार चल रहा है। मंत्रालय द्वारा हमेशा एक ही जवाब दिया जाता है, कॉल इंटरसेप्ट की पावर नहीं मिलेगी। सीआरपीएफ के अलावा बीएसएफ ने भी केवल हाई अलर्ट बॉर्डर के लिए यह अधिकार मांगा था, लेकिन उन्हें भी जवाब 'ना' मिला।

यह भी पढ़े :- पुलवामा आतंकी हमला: विश्व मीडिया ने हमले की कैसी कवरेज की

अधिकारी बताते हैं कि हमने गृह मंत्रालय को आश्वस्त किया गया था कि यह पावर केवल जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ या दूसरे वे राज्य, जहां आतंकी और नक्सली बड़े हमलों को अंजाम देते हैं, वहीं के लिए दे दी जाए।अगर यह पावर मिल जाती तो हमें रियल टाइम इंर्फोमेशन मिलने लगती। आतंकी आपरेशनों के दौरान निश्चित तौर पर इसका लाभ होता है।अब जो भी सूचनाएं मिलती हैं वह आईबी या संबंधित राज्य की पुलिस से मिलती है। इनके पास फोन इंटरसेप्ट करने की पावर होती है।

यह भी पढ़े :- पुलवामा आतंकी हमला : 37 जवान शहीद, अरुण जेटली मीडिया को संबोधित कर रहे हैं

इन संगठनों से इनपुट मिलने और उसे आपरेशन में लगे दल तक पहुंचाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है।इस सूचना को समझने का भी एक प्रोटोकॉल होता है। कई बार देखने को मिला है कि आपरेशन के दौरान सीआरपीएफ अपने स्तर पर कुछ ऐसी सूचना जुटा लेती है, जो आईबी से नहीं मिलती। यहां दिक्कत यह है कि उस सूचना से जुड़े लोगों की कॉल इंटरसेप्ट करने के लिए बल के पास न तो उपकरण होते हैं और न ही अधिकार। नतीजा, बहुत कुछ हाथ से निकल जाता है।

आईपीएस बनाम कॉडर

सीआरपीएफ के पूर्व आईजी हरीश.स सूद का कहना है कि अर्धसैनिक बलों में सदैव आईपीएस और कॉडर अफसरों के बीच विवाद रहा है। चूंकि बल का सर्वोच्च पद यानी डीजी, वह आईपीएस के पास होता है। कॉडर अधिकारी जो अपनी 37-38 साल की सेवा के बाद मुश्किल से आईजी या एडीजी तक पहुंच पाता है। एडीजी भी अब पिछले कुछ सालों से बनाए जाने लगे हैं, नहीं तो इससे पहले यह पद भी आईपीएस के पास रहा है।

मौजूदा समय में देखे तो हर फोर्स में कोई इक्का-दुक्का एडीजी ही कॉडर अधिकारी होता है। इस बाबत अदालत में केस भी चल रहा है। सूद का कहना है कि गृह मंत्रालय में कॉडर अफसरों की कोई नहीं सुनता। उन्हें आईपीएस के नीचे ही चलना पड़ता है। आईपीएस अधिकारी जो दो-तीन साल के लिए किसी बल में आता है, जबकि कॉडर अफसर अपना पूरा सेवाकाल उसी फोर्स में बिताना है। कॉल इंटरसेप्ट करने के अधिकार की पैरवी यदि आईपीएस करें तो यह तुरंत मिल सकता है। जैसे ही फाइल ऊपर जाती है तो यह कह कर उसे वापस कर देते हैं कि इसका दुरुपयोग हो सकता है।
सीआरपीएफ में दो-तीन साल के लिए आने वाले डीजी आपरेशनों के लिए अपनी नई नीति बनाते हैं। इसका खामियाजा बल को भुगतना पड़ता है।कोई डीजी कहता है कि आपरेशनों में पैदल चलो, दूसरा कहता है बाइक ले लो, तीसरा बोलता है कि माइनिंग प्रोटेक्टिेड व्हीकल ठीक हैं। इसके बाद अन्य कोई डीजी अपनी नई बात ले आता है।अगर सीआरपीएफ को आतंकी और नक्सली इलाकों में 'कॉल इंटरसेप्शन' का अधिकार मिलता है तो उससे बल को बहुत ज्यादा मजबूती मिलेगी। इसके लिए सरकार को एक निगरानी तंत्र के ज़रिए यह अधिकार दे देना चाहिए।
  • बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी व एसएसबी के पास सर्विलांस का अधिकार नहीं है। के. विजय कुमार, एमएल कौमावत, रमन श्रीवास्तव और आशीष मित्रा आदि महानिदेशकों ने कई बार गृह मंत्रालय को यह अधिकार देने के लिए प्रपोजल भेजा था। बीएसएफ के रिटायर्ड आईजी आरसी चिलकोटी का कहना है कि एक तय सीमा में ही सही, लेकिन यह अधिकार मिल जाए तो आतंकी घटनाओं से बचने में खासी मदद मिलेगी। सीमा के चार-पांच किलोमीटर के दायरे में सर्विलांस सुविधा काफी कारगर हो सकती है। 

सीआरपीएफ ने 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा तो जवाब मिला 'ना' सीआरपीएफ ने 'कॉल इंटरसेप्ट' करने का अधिकार मांगा तो जवाब मिला 'ना' Reviewed by Akash Sharma on February 16, 2019 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.